लगता था दरबार
फाटक पूजा के बाद दरबार लगता था, जिसमें इलाकेदार महाराजा को नजराना अदा करते थे। इस अवसर पर महाराजा द्वारा रियासत की प्रगति रिपोर्ट भाषण के माध्यम से प्रस्तुत की जाती थी। वर्ष 1966 में परंपरा का निर्वहन करते हुए अंतिम बार रियासती अंदाम में दशहरा जुलूस निकाला गया।
इसके बाद महाराजा एमएस सिंहदेव द्वारा शोभायात्रा की परंपरा बंद कर दी गई ओर 1967 से परंपरा का निर्वहन करते हुए सिर्फ सरगुजा पैलेस में परंपरा अनुसार महाराजा सरगुजा लोगों से मिलते चले आ रहे हैं। सन् 2000 तक एमएस सिंहदेव व 2001 से निरंतर टीएस सिंहदेव सरगुजा रियासत की परंपरा की जीवंत बनाए हुए हैं।
विवाह के बाद पहली बार आदित्येश्वर शरण सिंहदेव विधिवत परंपरा का निर्वहन कर वर्तमान महराज के साथ लोगों के दर्शन के लिए उपलब्ध रहेंगे।
आज भी पैलेस में उमड़ती है भीड
दशहरा के दिन आज भी शहर सहित ग्रामीण इलाकों से लोग पैलेस पहुंचते हैं। यहां महाराजा टीएस सिंहदेव लोगों से मुलाकात करने के लिए उपलब्ध रहते हैं। मंगलवार को भी महाराजा टीएस सिंहदेव व आदित्येश्वर शरण सिंहदेव पैलेस में लोगों को दर्शन देंगे।
हाथियों की निकलती थी शोभायात्रा
सरगुजा रियासत के परंपरा के अनुसार विजयादशमी के अवसर पर शस्त्र पूजा के बाद जुलूस निकलता था। इसमें स्वर्ण हौदायुक्त युक्त हाथी में महाराज व उनके पीछे 3 हाथी में क्रमश: युवराज बैठते थे। इनके साथ ही रियासत से जुडे अधिकारी-कर्मचारी शेरवानी-चूडीदार पायजामा व पगड़ी धारण कर काफिले में शामिल होते थे।
इनमें हाथियो के अतिरिक्त नगाड़ा, रिजर्व फोर्स का समूह, सरगुजिहा नृत्य दल के साथ बिलासपुर रोड स्थित बंजारी में नीलकंठ पक्षी दर्शन कर लौटते वक्त सदर रोड होते हुए जूना गद्दी तथा ब्रह्म मंदिर मे पूजन उपरांत पैलेस पहुंचते थे। जहां रियासत के गंवटिया व जनता उपस्थित रहते थे।
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